संवाददाता : रामकुमार भारद्वाज
कोण्डागांव : वर्ष 2017 से कार्यालयों के चक्कर काटते हुए, परेशान होकर मई 2018 में आत्महत्या कर लेने के संबंध में आवेदन देने के बावजूद अब तक कोई निराकरण नहीं होने और इस वर्ष पुनः बैंक से ऋण वसूली की नोटिस मिलने के बाद से एक वयोवृद्ध आदिवासी किसान के आत्महत्या कर लेने की बात कहने का मामला सामने आया है।
मामला कोण्डागांव तथा विधानसभा केशकाल क्षेत्र का है, जिस क्षेत्र के एक आदिवासी किसान के द्वारा कम धान खरीदने की बात सुनते ही व्यथित होकर आत्महत्या कर ली गई है तथा उक्त मामले ने क्षेत्र सहित राज्य स्तरीय राजनीतिक गलियारे में हलचल मचा दी है। अब चूंकि प्रकाश में आ रहे इस नए मामले में वयोवृद्ध आदिवासी किसान ने आत्महत्या नहीं किया है, इसलिए संभवतः उक्त वयोवृद्ध आदिवासी किसान की न ही शासन को, और न ही प्रशासन को और न ही किसी भी राजनीतिक दल के नेताओं को ही परवाह है।
बता दें कि, प्रकाश में आया यह पुराना मामला सिंचाई हेतु 50 प्रतिशत अनुदान पर खुदवाए गए नलकुप के असफल होने एवं लगभग 40 हजार रुपए जैसी राशि बैंक में अदा करने के बावजूद छ.ग.राज्य ग्रामीण बैंक द्वारा ली गई मूल ऋण राशि से लगभग दुगूनी राशि लौटाने संबंधी नोटिस बार-बार जारी किए जाने से ही परेशान होकर ही एक आदिवासी वयोवृद्ध किसान दुवारु नेताम के द्वारा 29 मई 2018 को जनदर्शन में पहुंचकर कलेक्टर से आग्रह किया गया था कि उसके द्वारा नलकुप खनन हेतु बैंक से ली गई अधिकतम ऋण राशि को वापस करने के बाद भी, उससे की जा रही वसुली से मुक्ति दिलाएं, अन्यथा वह आत्महत्या कर लेगा। लेकिन उक्त मामले में आज ढाई वर्श बितने को है किसी भी अधिकारी के द्वारा कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया है, वहीं इस वर्ष पुनः उक्त किसान को कुल राषि 184752 रुपए तथा एकमुश्त समझौता राशि 74178 रुपए का नोटिस प्राप्त हुआ है, और नोटिस प्राप्त होने के बाद से ही परेशान उक्त किसान जिला मुख्यालय से लेकर यहां-वहां मदद् की गुहार लगाते भटकता नजर आने लगा है।
मामला जिले के तहसील फरसगांव अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत कबोंगा के मुल निवासी आदिवासी किसान दुवारु पिता स्व.मंगलु नेताम का है। गौरतलब बात यह है कि वर्श 2017 में भाजपा सरकार के कार्यकाल में आवेदन देना शुरु किए और कांग्रेस की सरकार आते ही समस्या का समाधान नहीं होने पर आत्महत्या कर लेने का उल्लेख किए आवेदन प्रस्तुत करने वाले वयोवृद्ध आदिवासी किसान की समस्या का समाधान न जाने कब होगा ? वहीं मारंगपुरी के आदिवासी किसान के आत्महत्या कर लेने पर भाजपा की पूर्व मंत्री तथा कांग्रेस के वर्तमान केषकाल विधायक तक पीडित परिवार से मिलकर अपनी-अपनी संवेदनाएं प्रकट कर चुके हैं।
लेकिन चूंकि वयोवृद्ध आदिवासी किसान दुआरुराम नेताम के द्वारा आत्महत्या कर लेने संबंधी आवेदन मात्र दिया गया है, आत्महत्या नहीं किया गया है, इसलिए न ही शासन और न ही प्रशासन और न ही अन्य राजनीतिक दलों को ही कोई फर्क पड़ता नजर नहीं आ रहा है। अब देखना यह है कि विभिन्न सरकारों के जनहितार्थ योजना बनाए जाने, ऋण माफी की घोशणाओं के दावों के बीच आदिवासी बाहुल्य बस्तर संभाग के एक वयोवृद्ध आदिवासी किसान को नलकूप खनन हेतु लिए गए ऋण राशि के संदर्भ में आत्महत्या करने के लिए बाध्य होना पड़ता है या फिर वयोवृद्ध आदिवासी किसान को आत्महत्या करने से बचाया जा पाता है ?