अंतर्राज्यीय आदिवासी लोक नृत्य महोत्सव का हुआ समापन, विभिन्न राज्यों के जनजातीय नर्तक दलों ने शानदार प्रस्तुति से समा बांधा..

Spread the love

रायपुर :- मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय राजधानी रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में दो दिवसीय जनजातीय गौरव दिवस एवं अंतर्राज्यीय आदिवासी लोक नृत्य महोत्सव के समापन समारोह में शामिल हुए। मुख्यमंत्री की उपस्थिति में विभिन्न राज्यों के लोक नर्तक दलों ने अपनी-अपनी प्रस्तुतियों से दर्शकों में उत्साह भर दिया। इस अवसर पर हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम, उत्तराखंड समेत छत्तीसगढ़ के जनजातीय एवं लोक कलाकारों ने प्रस्तुति दी।

त्रिपुरा से आए ब्रू रियांग जनजाति समुदाय के नर्तक दल ने परंपरागत लोकनृत्य होजागिरी की प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस नृत्य में ब्रू रियांग जनजाति समुदाय की युवतियों ने सिर के ऊपर बोतल को संभालते हुए अद्भुत सामंजस्य के साथ प्रस्तुति दी। नृत्य के दौरान नर्तकों के कलात्मक प्रदर्शन को भी दर्शकों की खूब सराहना मिली।

इसके पूर्व हिमाचल प्रदेश के लोक कलाकारों ने मनमोहक कायांग नृत्य की प्रस्तुति दी, जो हिमाचल प्रदेश के सबसे लोकप्रिय नृत्यों में से एक है। इस नृत्य में नर्तक दल एक दूसरे की भुजाओं को बुनकर माला जैसा पैटर्न बनाया, धीर-धीरे कदमताल करते हुए प्रतीकात्मक रूप से माला की मोती जैसे बिखरते हुए फिर जुड़ते हुए पारंपरिक कपड़े पहने और गहनों से सुसज्जित नृत्य प्रस्तुत किया।

इसके बाद मेघालय के गारो नृत्य की प्रस्तुति हुई। गारो समुदाय के लोग इस नृत्य में फसल कटाई के बाद देवता मिसी सालजोंग की आराधना कर उन्हें धन, धान्य के लिए अपनी आस्था और निष्ठा व्यक्त करते हैं। इस नृत्य में लोक वाद्य के प्रयोग से उत्पन्न ध्वनि ने दर्शकों को रोमांचित कर दिया।

इसी क्रम में मिजोरम के मिजो और चरमा जनजाति समुदाय ने युद्ध कौशल, शौर्य, पराक्रम और युद्ध विजय के प्रतीक नृत्य मिजो प्रस्तुत किया। इस नृत्य के जरिए समुदाय ने वीर गाथा का जीवंत प्रदर्शन किया जिसमें यह बताया गया कि युद्ध के दौरान किस तरह समुदाय के वीर योद्धा ने गांव की रक्षा, जिसके बाद ग्रामीणों ने उत्साहपूर्वक उनका सम्मान किया। इसी तरह उत्तराखंड के जनजाति समुदाय ने हारुल नृत्य का प्रस्तुत किया जोकि हाटी जनजाति का पारंपरिक नृत्य और लोकगीत की एक खास शैली है। हारुल नृत्य जौनसार-बावर और चकराता क्षेत्र में किया जाता है। हारुल नृत्य में वीर पांडवों के साहस और वीरता, देवी-देवताओं की कहानियां, देवभूमि के इतिहास और जनजाति की संस्कृति से जुड़ी घटनाओं को बड़े ही रोचक ढंग से पेश किया गया। इसी क्रम में छत्तीसगढ़ के अलग-अलग जिलों से आए लोक कलाकारों ने भी छत्तीसगढ़ के प्रचलित लोकनृत्यों की प्रस्तुति दी।

उल्लेखनीय है कि महोत्सव के पहले दिन सिक्किम लिंबू जनजाति समुदाय द्वारा चाकोस तांगनाम नृत्य, गुजरात के लोक नर्तक दल ने सिद्धि गोमा नृत्य, अरुणाचल प्रदेश के कलाकारों ने गेह पदम ए ना न्यी, मध्यप्रदेश डिंडोरी के गोंड जनजाति ने सैला रीना, जम्मू कश्मीर से गुज्जर समुदाय ने गोजरी लोक नृत्य, छत्तीसगढ़ के माड़िया जनजाति ने गौर माड़िया नृत्य, उत्तराखंड के जनजातीय समुदाय द्वारा दिया बाती नृत्य, तेलंगाना के द्वारा मथुरी नृत्य, उत्तर प्रदेश के द्वारा कर्मा नृत्य, कर्नाटक के द्वारा सुगाली नृत्य, आंध्र प्रदेश के द्वारा ढीमसा नृत्य, दमन दीव द्वारा तारपा नृत्य तथा राजस्थान के जनजातीय कलाकारों द्वारा चकरी नृत्य की प्रस्तुति दी गई थी। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ के सभी जिलों के जनजातीय कलाकारों द्वारा अलग-अलग तीज त्यौहारों के लोक नृत्यों की प्रस्तुति दी गई।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *