CG Politics News | The alliance that existed till 3 months ago broke
रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजनीति में तीन महीना पहले तक बने रहने वाले गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के बीच गठबंधन टूट गया है। बसपा ने अब तय किया है कि वह राज्य की सभी 11 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी। इससे पहले विधानसभा 2023 के चुनाव में दोनों पार्टियों ने गठबंधन कर सभी 90 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन केवल गोंगपा एक सीट जीत पाई थी।
बसपा प्रत्याशी जल्द होंगे घोषित
बसपा राज्य की सभी 11 लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने के अंतिम दौर में पहुंच चुकी है। पार्टी के प्रदेश प्रभारी ओमप्रकाश बाजपेयी ने हरिभूमि से चर्चा में कहा है कि जल्द ही सभी सीटों के लिए प्रत्याशी घोषित कर दिए जाएंगे। उन्होंने ये भी साफ किया है कि पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी गोंगपा के साथ मिलकर लड़ी थी, लेकिन इस बार गठबंधन नहीं होगा।
क्यों टूटा गठबंधन
इन दोनों दलों के बीच गठबंधन क्यों टूटा ? इस सवाल का कोई सीधा जवाब बसपा के प्रदेश प्रभारी ने नहीं दिया है। कारण पूछने पर उन्होंने केवल यही कहा कि दोनों दल अपने संगठन का विस्तार करना चाहते हैं, इसलिए अलग-अलग लड़ रहे हैं। गठबंधन टूटने के सवाल पर गोंगपा प्रमुख एवं मौजूदा विधायक तुलेश्वर सिंह मरकाम का कहना है कि बसपा ने गठबंधन तोड़ लिया। कारण पूछने पर उन्होंने कुछ भी नहीं बताया।
बसपा को रास नहीं आता गठबंधन
छत्तीसगढ़ की राजनीति में बसपा अपना जनाधार लगातार खोती जा रही है। इस बार विधानसभा में भी पार्टी का कोई विधायक नहीं है। इससे पहले एक-दो विधायकों के साथ विधानसभा में पार्टी की मौजूदगी नजर आती थी। खास बात ये है कि पिछले कुछ चुनावों को देखा जाए, तो बसपा को छत्तीसगढ़ में गठबंधन की राजनीति रास नहीं आ रही है। 2018 के विधानसभ चुनाव में बसपा ने जोगी कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था, लेकिन लोकसभा 2019 आते-आते यह गठबंधन टूट गया। इस बार वैसा ही गोंगपा के गठबंधन को लेकर हुआ है।
विधानसभा में गठबंधन नहीं चला था
बसपा को 2018 के विधानसभा चुनाव में गोंगपा के सथ गठबंधन फायदेमंद नहीं रहा था। इस चुनाव में बसपा ने राज्य की 90 सीटों में से 53 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, जबकि गोंगपा के हिस्से में 37 सीटें आई थीं। गोंगपा प्रमुख तुलेश्वर सिंह मरकार गठबंधन के प्रत्याशी के रूप में पाली तानाखार सीट जीतने में सफल रहे थे, लेकिन बसपा को जो सीटें मिलती थीं, उसमें भी हार का सामना करना पड़ा था। लिहाजा इस बार बसपा ने अकेले ही चुनाव लड़ने का रास्ता चुना है।