बस्तर के आदिवासी श्रीराम को अपना रक्षक मानते हुए अपने नाम के साथ जोड़ते हैं, राम

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जगदलपुर। आज पूरा देश श्रीरामनवमी का पर्व मना रहा है, आदिवासी बाहूल्य बस्तर में भी श्रीरामनवमी का उल्लास देखा जा सकता है। वर्तमान बस्तर संभाग व तत्कालीन दण्डकारण्य काे प्रभु श्रीराम का पड़ाव स्थल श्रीराम वन गमन पथ से जाेड़ा गया है, यहां पर बस्तर के ग्रामीण आज भी प्रभु श्रीराम को अपना रक्षक मानते हैं, और अपने नाम के साथ राम नाम भी जोड़ते हैं। जैसे सुबाहुराम, बैदूराम, बलिराम, आशाराम, हुंगाराम, अंतूराम, भुरसूराम आदि। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि बस्तर का पुराना नाम दंडकारण्य है, जहां भगवान श्रीराम ने वनवास के दैरान दुष्टों का नाश किया था। इस उपकार को आदिवासी समाज भूला नहीं है, इसलिए आज भी अपने नाम के साथ राम जोड़ते हैं।
विदित हाे कि बस्तर पंडुम 2025 महोत्सव के आयाेजन में प्रख्यात कवि एवं श्रीराम कथा वाचक डाॅ. कुमार विश्वास के द्वारा ’’बस्तर के श्रीराम’’ पर काव्य पाठ करते हुए उन्हाेने कहा था कि हमें कैकई माता का आभारी होना चाहिए कि उनके कारण भगवान राम के चरण इस दंडकारण्य में पड़े। कई बार शाप वरदान बन जाता है, कैकई का हठ दंडकारण्य और जन सामान्य के लिए वरदान बन गया। श्रीराम ने दंडकारण्य बस्तर आकर वनवासी और नगरीय सभ्यता का भेद खत्म कर दिया। यहां बस्तर आकर उन्होंने भील, कोल, किरात को गले लगाया। अगर चित्रकूट से राम लौट जाते तो हमें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम नहीं मिलते। श्रीराम को जगतपति मर्यादा पुरुषोत्तम इसी बस्तर दंडकारण्य की मिट्टी ने बनाया। यह भी विदित हाे कि भगवान श्रीराम अपने वनवास के चौथे चरण में बस्तर के दंडकारण्य पहुंचे थे। भगवान श्रीराम धमतरी से कांकेर, कांकेर से रामपुर, जुनवानी, केशकाल घाटी शिव मंदिर, राकसहाड़ा, नारायणपुर, चित्रकोट शिव मंदिर, तीरथगढ़ जलप्रपात, सीताकुंड, रामपाल मंदिर, कोटी माहेश्वरी, कुटुंबसर गुफा और ओडिशा के मलकानगिरी गुप्तेश्वर और सुकमा जिले के रामाराम मंदिर समेत कोंटा में श्रीराम ने वनवास के दिनों में यहां से होकर दक्षिण भारत के लिए प्रस्थान किया था।

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