हमने आतंकवाद और नक्सलवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई गई : अमित शाह

Spread the love

रायपुर/दिल्ली। गृह मंत्री अमित शाह राज्यसभा में गृह मंत्रालय के कामकाज पर चर्चा का जवाब दे रहे हैं. गृह मंत्री ने कहा कि चर्चा के दौरान कुछ उपयोगी सुझाव भी आए हैं, कुछ हमारी कमियों की ओर ध्यान दिलाया गया, कुछ राजनीतिक टिप्पणियां भी की गईं, कुछ राजनीतिक आक्षेप भी लगाए गए. सभी का संसदीय भाषा में जवाब देने का प्रयास करूंगा. उन्होंने कहा कि देश की सरहदों को सुरक्षित करने के लिए अपना बलिदान दिया है, केंद्रीय बलों और स्टेट पुलिस के उन हजारों जवानों को भी नमन करता हूं.में लगी आग गृह मंत्रालय एक प्रकार से बहुत विषम परिस्थिति में काम करता है. कानून-व्यवस्था का जिम्मा राज्यों के पास है और सरहदी सुरक्षा गृह मंत्रालय के जिम्मे है. इसमें बदलाव की जरूरत भी नहीं है. 76 साल बाद ऐसी परिस्थिति खड़ी हो गई है कि कई अपराध राज्यों की सीमा तक सीमित नहीं होते. कई अपराध ऐसे होते हैं जो देश की सीमा के बाहर से भी हमारे यहां होते हैं. 10 साल में नरेंद्र मोदी जी ने एक साथ परिवर्तन कर राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने का काम किया है.गृह मंत्री अमित शाह ने तीन समस्याएं दशकों से नासूर की तरह बन गई थीं. एक वामपंथी उग्रवाद, दूसरा पूर्वोत्तर का उग्रवाद और तीसरा आतंकवाद. पहले जम्मू कश्मीर में आतंकी आते थे और कोई त्योहार नहीं होता था जब हमले नहीं होते थे. मोदीजी के आने के बाद भी हमले हुए. उरी और पुलवामा में हमला हुआ. 10 दिन में पाकिस्तान में घर में घुसकर एयर स्ट्राइक कर जवाब दिया गया. दुनिया में इजरायल और अमेरिका की सूची में महान भारत का नाम जुड़ गया.अमित शाह ने कश्मीर में जी-20 बैठक के सफल आयोजन का जिक्र करते हुए कहा कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में यात्रा निकली थी. हमें लाल चौक जाने की परमिशन नहीं मिल रही थी. हमने जिद की तो सेना की सुरक्षा में जाना पड़ा और आनन-फानन में तिरंगा फहराकर आना पड़ा. उसी लाल चौक पर कोई घर ऐसा नहीं था जिस पर हर घर तिरंगा अभियान में तिरंगा न हो. हमने कई ऐसे कदम उठाए जिसकी वजह से आतंकियों से भारतीय बच्चों के जुड़ने की संख्या करीब-करीब शून्य हो गई है. आतंकी जब मारे जाते थे, बड़ा जुलूस निकलता था. आज भी आतंकी मारे जाते हैं और जहां मारे जाते हैं, वहीं दफना दिए जाते हैं. घर का कोई आतंकी बन जाता था और परिवार के लोग आराम से सरकारी नौकरी करते थे. हमने उनको निकालने का काम किया. आतंकियों के परिवार के लोग बार काउंसिल में बैठे थे और प्रदर्शन होने लगता था. आज वो श्रीनगर या दिल्ली की जेल में हैं. उन्होंने पथराव से लेकर ऑर्गेनाइज हड़ताल की घटनाओं के आंकड़े भी गिनाए.

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *