दंतेवाड़ा- 8वीं कक्षा के छात्र ने की आत्महत्या : आवासीय विद्यालय में फांसी के फंदे पर झूला, अपने हाथ व एक कागज पर लिखी मन की बात, भगवान से की शिकायत

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0  अपने हाथ व एक कागज पर लिखी मन की बात, भगवान से की शिकायत

0  दंतेवाड़ा जिले के भांसी के पोटा केबिन का मामला 

जगदलपुर। बस्तर संभाग के दंतेवाड़ा जिले से हैरान करने वाली खबर आई है। जिले के भांसी गांव स्थित पोटाकेबिन छात्रावास के एक कमरे में आठवी के छात्र ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। इस घटना से गांव वालों, विभाग और जिला प्रशासन में हड़कंप मच गया है।
मृत छात्र घासीराम बारसा कुंदेली गांव का निवासी था। वह भांसी पोटाकेबिन में रह कर आठवी कक्षा में पढ़ता था। बताया गया है कि छात्रावास में एक रूम है, जहां, बीमार पड़ने वाले छात्रों को क्वारंटाइन रखा जाता है। ताकि बाकी बच्चे संपर्क में ना आएं। घासीराम कक्षा नायक था। जिस किसी की तबियत बिगड़ती थी, तो घासीराम गोली दवाई देता था। शनिवार रात को जब सारे बच्चे सो गए तब घासीराम ने उसी रूम में अपने गमछे का फंदा बनाकर पंखे पर झूल गया।
जब बाकी बच्चे उठे तो यह माजरा देखा और शिक्षक व प्यून को इसकी सूचना दी। इसके बाद मौके पर बचेली एसडीएम, तहसीलदार, एसडीओपी पहुंचे। पुलिस ने बालक के शव को कब्जे में लेकर जिला अस्पताल पीएम के लिए भेजा। पुलिस ने बालक के जेब से पर्ची बरामद की है। साथ ही मृतक के हाथ पर सुसाइड नोट भी लिखा पाया गया है। लेकिन लिखावट समझ में नही आ रही है। जेब से कई लेटर मिले हैं, उसमें अपनी मन की बात लिखी है, भगवान से कई बात को लेकर शिकायत भी की है। ओम नमः शिवाय, गायत्री मंत्र लिखा पाया गया है। किसी के बारे में या अपनी मौत के बारे में लिखापाया नही गया है।

परिजनों की शिकायत

कुंदेली गांव के लोग व मृत बालक के परिजनों ने कहा है कि हम अपने बच्चे को पढ़ने भेजे थे, लेकिन शव देखना पड़ रहा है। कुछ समझ नही आ रहा है। सूचना दी गई, लेकिन जब भांसी पहुचे तो शव को निकाल कर गाड़ी में डाल चुके थे, दंतेवाड़ा पीएम करवाने भेज रहे थे। हम तो स्कूल में अपने बच्चे को देख भी नही पाए।

इतनी गोपनीयता क्यों?

भांसी के ग्रामीणों का कहना है भांसी के लोगो को भी घटना के बारे में पता नहीं चलने नही दिया गया। सुबह सुबह सभी प्रशासनिक अधिकारी पहुंच गए और बड़ी ही जल्दबाजी में बच्चे के शव को निकाल कर पीएम के लिए भेज दिया गया। जब पता चला पोटाकेबिन पहुचे तो ताला लगा हुआ था। किसी बच्चों से बातचीत भी नही करने दी गई, ना मिलने दिया गया। रविवार का दिन था सभी बच्चों के परिजन अपने अपने बच्चों से मिलने आते हैं मगर परिजनों को भी उनके बच्चों से मिलने नही दिया गया।

 

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